* 15 साल की किशोरी मजदूरी
कर चला रही परिवार
जबलपुर। शास्त्रीनगर में झोपड़-पट्टी में रहने वाली 15 वर्षीय रूपा का बचपन गुड्डा -गुड़ियों के खेल में नहीं बीता है, उसको बचपन से ही नाजुक कंधों में गृहस्थी का बोझ मिला है। उसके उसके माता पिता की कुछ साल पहले अचानक मानसिक स्थिति खराब हो गई तो रूपा के सामने अपना ,अपने माता-पिता और 5 साल के छोटे भाई का पेट भरने की समस्या खड़ी हो गई। अब वह मेहनत मजदूरी तथा कुछ घरों में झाडू- पोछा का काम कर रिश्ते निभा रही है।
अपने माता -पिता की मानसिक स्थिति खराब होने पर रूपा ने बाल श्रमिक के रूप से 12 वर्ष की उम्र से काम करना शुरू किया। रूपा बताती है कि उसे पहले 50 रूपए दिन भी काम करने पर मिलते थे। लेकिन अब 150-200 रूपए तक मजदूरी मिल जाती है। बच्चों को लोग काम पर कम ही लगाते है। लेकिन अब मुझे लोग मजदूरी देने लगे है। कई बार काम नहीं मिलने पर घ्रर में चूल्हा तक नहीं जलता है लेकिन फिलहाल मेहनत मजदूरी कर अपने घर वालों का पेट पाल रही है।
पिता की लाश भी उठाई
रूपा की कहानी आम बाल श्रमिक से हट कर है। पिछले दिनों गत 11 अप्रैल को रूपा के विक्षिप्त पिता की मौत हो गई। वह बीमारी से पीड़ित था। मेडिकल कालेज अस्पताल में जब 15 वर्षीय रूपा को उसके पिता की लाश सौंपी गई तो उसके पास समस्या खड़ी हो गई कि पिता का अंतिम संस्कार कैसे करे। पिता की बीमारी के कारण कई दिन से मजदूरी
पर नहीं गई थी। 10 रूपए पास में नहीं थे लेकिन एक सामाजिक संस्था ने अंतिम संस्कार की व्यवस्था कर दी और रूपा ने अपने पिता की अर्थी को कांधा और शव को अग्नि प्रदान की।
भाई को पढ़ने भेज रही
रूपा जहां स्वयं मजदूरी करती है वहीं अपने भाई को प्राथमिक शाला में पढ़ने के लिए भेजती है7 मजदूरी से लौटने के बाद अपनी विक्षिप्त मां की देख रेख करने लगी है। पिता की मौत के बाद अब फिर रूपा की अपनी बाल श्रमिक की दिनचर्या शुरू हो गई है।
ने जब से होश संभाला तो
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