डॉ. जितेन्द्र जामदार ने 23 साल पहले
किया था जबलपुर में पहला आॅपरेशन
भारत के चिकित्सा जगत में ं आज से करीब 30 साल पहले घुटने के ज्वाइंट रिप्लेसमेंट के काम में तेजी आई। इसके पूर्व लोग विदेशो मेंज्वाइंट रिप्लेसमेंट कराया करते थे। करीब 23 साल पहले जबलपुर के ख्यातिलब्ध अस्थि रोग विशेषज्ञ , त्रिवेणी हास्पिटल के डायरेक्टर डॉ. जितेन्द्र जामदार ने जबलपुर में पहला घुटने का ज्वाइंट रिप्लेसमेंट1992 में किया। उस दौरान पूरे भारत में दो दर्जन चिकित्सक ही इस नई तकनीकि के आपरेशन करने वाले और जानकार थे। यहां तक इंदौर जैसे बड़े शहर में ज्वाइंट रिप्लेसमेंंट नहीं होता था। उस समय न ओटी अत्याधिक थी और न कम्प्यूटराइज , मैनुअल तरीके से आॅपरेशन करना पड़ता था। हड्डी काटने में भी काफी वक्त था, इस पर डेढ़ घंटे में आॅपरेशन पूरा करने की चुनौती थी।
डॉ जितेन्द्र जामदार ने अपनी पहले चुनौती पूर्ण केस के अनुभव शेयर करते हुए बताया कि आपरेशन करते वक्त घुटना के उपर बेंडेज बांधना पड़ता था जिससे खून का प्रवाह रूक सके और घुटनों का आॅपरेशन किया जाए। इसके लिए अधिकतम डेढ़ घंटे का समय रहता था। अब भी घुटने का आॅपरेशन डेढ़ घंटे में ही करना पड़ता है लेकिन उस दौर में आधुनिक उपकरण नहीं थे, और न ही कम्प्यूटराइज मशीने थी।
एक्सरे मुख्य आधार
आॅपरेशन करने के लिए एक्सरे ही मुख्य अधार होता था। कई कोण से एक्सरे लेने के बाद पहले ही पूरी स्टडी कर प्लानिंग कर ली जाती थी कि कहां से आॅपरेशन शुरू करना है और कहां से हड़डी काट कर उसकी जगह नया ज्वाइंट डालना है। बेहद समीति समय में तेजी से काम करना होता था और इस जल्दी में भी आॅपरेशन 100 फीसदी सटीक होना चाहिए था चूंकि ज्वाइंट ऐसे होत थे कि बैठना बेहहद जरूरी था।
रूमटॉयड अर्थाराइटिस की थी मरीज
डॉ जामदार के अनुसार मेरे पास एक 40 वर्षीय महिला आई इलाज के लिए आई थी
जिसका नाम कृष्णा शुक्ला था जो आमनपुर की रहने वाली थी। वह रूमटॉयड अर्थाराइटिस यानी गठियाबाद से पीड़ित थी। इसे क्रॉनिक अर्थाराइटिस कहा जाता है। उस दौरान इसका इलाज बेहद मुश्किल एवं दवाइयां जोखिम भरी हुआ करती थी। महिला के लगभग सभी जोड़ अकड़ चुके थे। उसके दोनों कुल्हें और दोनों घुटने खराब थे। विकलांग जैसी हालत थी। उसका पहले एक कुल्हें का आॅपरेशन करे कुल्हे रिप्लेसमेंट किए गए। उसके करीब छह माह बाद घुटने को चुनौती पूर्ण आॅपरेशन किया गया।
ज्वाइंट देशी लगाया गया
डॉ. िजतेन्द्र जामदार ने बताया कि कृष्णा शुक्ला के घुटने के रिप्लेसमेंट के लिए कृत्रिम ज्वाइंट की जरूरत थी जो कि विदेशी आते थे तथा बेहद महंगे थे लेकिन विदेशी की हुबबू नकल देशी ज्वाइंट भी आया करते थे किन्तु उसकी विश्वनीय नहीं थे। डॉ जितेन्द्र जामदार के गुरू , पदमभूषण डॉ कांतिलाल हस्तीमल संचेती जिनके पास उन्होंने ने घुटने रिप्लेसमेंट का प्रशिक्षण लिया था। वे उस दौरान स्वयं की डिजाइन किए गए ज्वाइंट आइनरो कम्पनी से बनवाते थे। वहंी ज्वाइंट महिला के घुटने में रिप्लेसमेंट किया गया। करीब छह माह बाद महिला स्वयं फिर डॉ जितेन्द्र जामदार के पास आई और उसने दूसरे घुटने का आॅपरेशन कराने पेशकश की। डॉ जामदार का इस संबंध में कहना है कि यही प्रमाण था कि उनको पहला आॅपरेशन सफल सफल रहा है जो मरीज दूसरा आॅपरेशन करने आया। अबतक डॉ जितेन्द्र जामदार ने 1000 से अधिक आॅपरेशन किए है जबकि 100 से अधिक आॅपरेशन उन्होंने बिना आधुनिक मशीन एवं सीमित संसाधनों से किए। ाा थिा
अब कम्प्यूटर नविगेशन पद्धति
डॉ. जितेन्द्र जामदार ने वर्ष 1991 में इग्लैंड से जोड़ प्रत्यारोपण के लिए विश्व विख्यात केन्द्र राइटिगन अस्पताल से प्रशिक्षण हासिल किया। उस दौरान उनके पास मुम्बई के कई अस्पतालों से आॅफर आए लेकिन उन्होंने जबलपुर में ही अपनी सेवा देने का निर्णय लिया था डॉ. जितेन्द्र जामदार ने बताया कि वर्ष 2012 से कम्प्यूटर नॅविगेशन पद्धति से आॅपरेशन शुरू किया गया है। उन्होंने बताया कि आधुनिक मशीनों के आ जाने से अब आॅपरेशन बेहद आसान हो गए हैं। मशीनों की मदद से प्रत्यारोपण करने के लिए एक एक डिग्री तथा स्थान तय हो जाते हैं, जिससे चूक की कोई संभावना नहीं रहती है। उन्होंने बताया कि नॅविगेशन सिस्टम विश्व स्तरीय आॅपरेशन का मानक है। इससे जोड़ प्रत्यारोपण में बारीकी और सफाई से जोड़ सटीक बैठाया जाता है। उन्होंने बताया कि घुटने का प्रत्यारोण बेहद जटिल आॅपरेशन है, किन्तु अब कम्यूटरीकृत मशीनें आने से बेहद सरल हो गया है। इसमें मानवीय त्रुटि की गुंजाइश लगभग खत्म हो गई है।
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